के in Yasni Exposé of Kavi Deepak Sharma

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Kavi Deepak Sharma, 52, General Manager-Procurement @ Darvesh Group, Dubai

Birth name: Deepak Sharma, Nickname: Kavi Deepak Sharma, Country: India, Phone: +971556149073, Mobile: +9971693131, Messenger: DeepakSharma1313, E-mail: kavyadharateam (at) gmail.com, Language: English
I offer: Hindi urdu Kavita, Hindi films, Cinema, Geetkar, Hindi film Lyrics, Kavi Deepak Sharma, Mushaira, Nazam, India, Kavi Sammelan, Hindi Poet, Ghazal, Hindi Filmy Geet and Gaane
Kavi Deepak Sharma @ Darvesh Group, Dubai

9 Images of Kavi Deepak

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Kavi Deepak Sharma @ Dubai
Dec 09  +
Kavi Deepak Sharma @ Dubai
June 14  +
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9 results for Kavi Deepak Sharma

सबको नया साल मुबारक ............कवि दीपक शर्मा

आसमाँ ने सितारों जड़ी ओढ़ के चादर ज़मीं का हाथ पकड़कर कहा !चलो मेरी जान अपनी औलाद जिसे दुनिया कहती हैं इंसान उसकी खुशियों के वास्ते आओ एक दुआ मांगे . सारे संसार की हर एक ख़ुशी उन्हें देना मेरे मौला उनके सपनो को ताबीर हासिल हो किसी भी हाल उनकी दौलत,शोहरत और इज्ज़त मे हो खूब इजाफा उनकी हर ख्वाहिश को साकार बनाये नया साल . "दीपक" देहरी पर तेरी जलाते हैं हम ऐ जगतारक औलादें सब कुदरत की सबको नया साल मुबारक . कवि दीपक शर्मा सर्वाधिकार सुरक्षित @कवि दीपक शर्मा http://www.kavideepaksharma.co.in http ://www.shayardeepaksharma.blogspot.com
Kavi Deepak Sharma @ Dubai
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yasni 2009-12-31  +  

Kavi Deepak Sharma ki ek aur dilqash nazm

गगन को चूमते ऊंचे मकान वालों सुनो बहुत दिलकश , मुन्नकश ऐवान वालों सुनो तुम्हें क्यों अपनी इमारत पे गुरुर है इसका असली मालिक तो केवल मजदूर है इनकी हकदार रोते बच्चों की निगाहें है इनकी हक़दार पत्थर तोड़ती बेबस माँऐं हैं इनके हक़दार घायल हाथ , ज़ख्मी पाँव हैं इनके हक़दार तो बहते- रिसते घाव हैं तन तुम्हारा तो ऐसी चोटों से दूर है इसका असली हक़दार तो केवल मजदूर है कितने मजदूरों ने छोड़कर बीमार बच्चों को सूरत इन महलों की अपने हाथों से संवारी है दबा कर भूख के शोले एक लोटा पानी से इनके दरवाजों पर लाजवाब नक्काशी उभारी है तुने तो सिक्कों की रौशनी फेंकी पसीने पर मगर मजदूर की मेहनत ने तराशा कोहिनूर है चमकते फर्श पर तुम जो खड़े हो इतराये से कई हाथों ने इसे प्यार से सहलाया है हर टुकडा लगाया है बहुत करीने से बड़े सलीके से दुल्हन - सा इसे सजाया है आज उनको ही नहीं इजाजत दहलीज़ चड़ने की जिनके हुनर की बदौलत ड्योढी तेरी नूर है @कवि दीपक शर्मा Poem talen from poet's book "Manzar" http://www.kavideepaksharma.co.in http://shayardeepaksharma.blogspot.com http://kavideepaksharma.blogspot.com
Kavi Deepak Sharma @ Dubai
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yasni 2009-12-31  +  

Kavi Deepak Sharma ki ek Kavita........"जाती है दृष्टि जहाँ तक बादल धुएँ के देखता हूँ

"जाती है दृष्टि जहाँ तक बादल धुएँ के देखता हूँ अर्चना के दीप से ही मन्दिर जलते देखता हूँ । देखता हूँ रात्रि से भी ज्यादा काली भोर को आदमी की मूकता को गोलियों के शोर को देखता हूँ नम्रता जकडे हिंसा की जंजीर है आख़िर यकीं कैसे करूँ यह हिंद की तस्वीर है । कितने बचपन दोष अपना बेबस नज़र से पूछते है बेघर अनाथ होने का कारन खंडर से घर पूछते हैं टूटे कुंवारे कंगन अपना पूछते कसूर क्या है सूनी कलाई पूछती है आख़िर हमने क्या किया है सप्तवर्णी चुनरियों के तार रोकर बोलते है स्वप्न हर अनछुआ मन की बन गया पीर है ॥ नोंक पर तूफ़ान की शमा को लुटते देखता हूँ रोज़ कितनी रोशनी को खुदकुशी करते देखता हूँ देखता हूँ कुछ सुमन की ही बगावत चमन से श्वास का ही विद्रोह लहू , हृदय और तन से । लगता है सरिताएं भी हीनता से सूख रहीं क्योंकि हर हृदय समंदर आँख बनी क्षीर है ॥ हर हृदय की आस होती लौटकर न अतीत लाये वर्तमान से भी ज्यादा उसका भविष्य मुस्कुराये लेकिन प्रभु से प्रार्थना ,भविष्य देश का अतीत हो कुछ नहीं तो "दीपक" ह्रदय मे निष्कपट प्रीति हो क्योंकि नफरत की कैंची है जिस तरह चल रही डरता हूँ कहीं थान सारा बन न जाए चीर है Kavi Deepak Sharma http://www.kavideepaksharma.com
Kavi Deepak Sharma @ Dubai
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yasni 2009-12-31  +  

One of the best nazm of Kavi Deepak Sharma

जिस रोज़ हर पेट को रोटी मिल जायेगी जिस रोज़ हर चेहरा हँसता नज़र आयेगा जिस रोज़ नंगे बदन कपड़ों से ढके होंगे जिस रोज़ खुशियों में वतन डूब जायेगा उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना . जिस रोज़ किसानो के भरे खलियान होंगे और रोज़गारशुदा वतन के नौजवान होंगे जिस रोज़ पसीने की सही कीमत मिलेगी इन महलों से बड़े जिस रोज़ इन्सान होंगे उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना जिस रोज़ राह में कोई अबला न लुटेगी जिस रोज़ दौलत से कोई जान न मिटेगी जिस रोज़ यहाँ जिस्म के बाज़ार न लगेंगे जिस रोज़ डोली दर से कोई सूनी न उठेगी उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना . ये हाथ पसारे मासूम बचपन हजारों जिस रोज़ मुझे राह में घूमते न दिखेंगे जिस रोज़ ज़र्द, पिचके वीरान चेहरों पे भूख के नाचते - गाते बादल न दिखेंगे उस रोज़ मेरे नग्मों का अंदाज़ देखना मेरी आवाज़ में एक नई आवाज़ देखना . @Kavi Deepak Sharma http://www.kavideepaksharma.com
Kavi Deepak Sharma @ Dubai
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yasni 2009-12-31  +  

Kappy New Year 2010

प्रिय मित्र , परमपिता , परमेश्वर , जगत्स्वामी , जगेश , सर्त्रव्यापी इश्वर आप सभी को सपरिवार सकुशल ,सुरक्षित एवं आयुष्मान रखे . आप सबकी समस्त आशाओं को ,अभिलाषाओं को एवम स्वपनों को साकार करे. आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ! कुछ फूल, कुछ सितारे और एक चाँद थोड़ी सी चाँदनी , नर्म धूप की महक धनवर्षा, दहलीज़ पे किस्मत की दस्तक मुंडेर पर चुग्गा चुगती चिड़ियों की चहक घर में चहकते बच्चे , बतियाते माँ बाप चिरागों के बजाये जलते हुए आफ़ताब हर चीज़ में बरक्कत , हर शै में इजाफा हर मुश्किल तलाशती खुद अपना ही जवाब नई सुबह जब आसमान से एक नया सूरज धकेल पाँव से निकले जब अँधेरे की चादर नए साल की पहली सुनहरी किरन "दीपक" मुबारक़ बन के आगोश में ले ले तुम्हें आकर नया साल मुबारक़ नया साल मुबारक़ नया साल मुबारक़ aap sab ko navvarsh 2010 ki haardik mangalmay shubhkaamnaaye. ALL RIGHT RESERVED @DEEPAK SHARMA http://www.kavideepaksharma.com http://kav idepaksharma.blogspot.com
Kavi Deepak Sharma @ Dubai
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yasni 2009-12-31  +  

Meri Ghazal ko apni Aawaaz samjhna.............Kavi Deepak Sharma

Main to sirf itna hi jaanta hoon Mujhme kiya hain ye pahchanta hoon   Hunar kisi pahchaan ka mohtaaz nahi Ye tum bhi maante ho,main bhi maanta hoon   Mere pawno ke nishaan kabhi to padega zamana Isliye shahar dar shahr khaak chanta hoon   Udhaar ki nahi mujhme apni hi roshni hai Yoon fakr se chlta hoon, seena taanta hoon     Tum ise mera guroor na samjhana"Deepak" Paakar hi dam leta hoon jo bhi thaanta hoon     मैं तो सिर्फ़ इतना ही जानता हूँमुझमे  क्या है  ये पहचानता हूँ   हुनर  किसी  पहचान  का मोहताज़  नहीं  ये तुम भी मानते हो,मैं भी मानता  हूँ मेरे पावों  के निशाँ  कभी तो पढेगा  ज़माना इसलिए  शहर दर शहर  ख़ाक  छानता  हूँ उधार  की नहीं मुझमे अपनी ही रोशनी  हैयूं  फ़ख्र  से चलता  हूँ, सीना  तानता  हूँ   तुम इसे  मेरा गुरूर  न समझना "दीपक"   पाकर ही दम लेता हूँ जो भी ठानता हूँ       All right reserved with @Kavi Deepak Sharmahttp://www.kavideepaksharma.com
Kavi Deepak Sharma @ Dubai
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yasni 2009-12-01  +  

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